आप जितने भी परेशान हैं और मुश्किल हालात से गुज़र रहे हैं तो आप बेशक रो लें,खुद पर उदासी तारी कर लें, लोगों से मिलना जुलना छोड़ दें,खुद को तन्हा व बेबस महसूस करें,आपका हंसना बोलना कम हो जाए…मगर जनाब इन सबके होते हुए आपने अपने दिल व दिमाग़ के किसी कोने में ही सही मगर पांच बुनियादी बातों को ज़हन में ज़रूर रखना और इनको सोचते जाना है चाहे थोड़ा थोड़ा करके…….मगर बार बार……
पहली बात:
किसी भी सूरत खुद पर तरस नहीं खाना….
अपनी शक्लो सूरत या लहजे से किसी दूसरे इंसान को मजबूरो लाचार महसूस नहीं करवाना.
दूसरी बात:
आपका रोना, उदासी, परेशानी को सोचना वगैरह सिर्फ वक़्ती होना चाहिए,बार बार खुद से नहीं सोचना,सोचों को क़ाबू में रखना….
तीसरी बात:
अपने दिमाग़ को रास्ता तलाश करने में लगाना…
खुद को बाहर कैसा निकालना है ? मैं अपने महदूद वसाइल का कैसे बेहतरीन इस्तेमाल करूं ? कौन से लोग मेरा हौसला व अच्छी मदद कर सकते हैं??
वगैरह वगैरह…. प्लान करना है…. फिर बैठना नहीं है…. अल्लाह तआला पे भरोसा रखकर हिम्मत व कोशिश करनी है.
चौथी बात:
अच्छे अख्लाक़ का दामन कभी नहीं छोड़ना, अपने गुस्से और चिड़चिड़ेपन पर क़ाबू रख कर तहम्मुल व प्यार से सबके साथ पेश आना.
पांचवीं बात:
सब्र और पॉजिटिव सोच व उम्मीद को अपने साथ बांध कर रखना क्यूंकि परेशानी से बाहर आने और आसानी आने में कुछ वक़्त ज़रूर लगता है. दूसरा फिर बेसब्री व जल्दबाज़ी करने से टेंशन व डिप्रेशन में इज़ाफ़ा होता है.
तो दोस्तो,हर्फे आखिर ये कि अक्सर परेशानियां व मुश्किलात अल्लाह तआला की तरफ से आज़माइश के अलावा हमारी अपनी ग़ल्तियों, गुनाहों,मकाफाते अमल और हराम अमलों की वजह से हमारे सामने आती हैं- इसलिए ऐसे हालत में अल्लाह से पक्का नाता जोड़ना बहुत ज़रूरी होता है.
और हां एक पते की बात ये है कि जब मुश्किलात से बाहर आ चुके हों तो फिर खुद को दूसरों की मुश्किलें दूर करने में वक़्फ ज़रूर करना. जितना आसानी व हिम्मत से कर सकें. क्यूंकि जब आप दूसरों के काम संवारते हो तो अल्लाह तआला ऐसे असबाब पैदा कर देता है कि आपके काम संवरने लग जाते हैं. यक़ीन नहीं आता तो आज़मा कर देख लें..!!